नेक कर्मों की फिहरिश्त (A tribute to mother’s love)

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नेक कर्मों की फिहरिश्त (A tribute to mother’s love) ..... भूपेन्द्र कुमार दवे जिन्दगी पहले अपना अर्थ बताती है और फिर अपना मकसद जताने का प्रयास करती है। हम जैसे जैसे जिन्दगी का अर्थ समझने लगते हैं तो वह अच्छी लगने लगती है। हर पल मस्ती भरा होने लगता है। चहुँओर से प्यार की बारिश में उठती महक का सोंधापन उल्लास और उमंग भरने लगता है। हर दिन चौबीसों घंटे खिलखिलाहट मन को गुदगुदाने लगती है। नादान मन खुश हो झूमने लगता है। जिन्दगी अपनी पट्टी पर सुनहरे अक्षरों से लिख जाती है एक छोटा-सा अक्षर --- बचपन