खुशियों के फूल

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कल होली थी | सौरभ और सुरभि अपने पापा के साथ बाजार से ढेर सारा गुलाल, रंग, पिचकारी, मिठाई आदि लेकर आए थे | दरवाजे पर कदम रखते ही सौरभ चिल्लाया, “देखो माँ , हम लोग पूरा बाजार ही उठा लाए |” और इसी के साथ सौरभ और सुरभि बाजार से लाए सामान खोल-खोलकर माँ को दिखलाने लगे | तभी  दरवाजे की घंटी बजी | माँ ने दरवाजा खोला | काम वाली बाई आई थी | उसके साथ उसकी छोटी बेटी भी थी |  “यहाँ कोने में बैठ जाओ गुड़िया ! जल्दी जल्दी काम निपटाकर बाजार चलेंगे | फिर तुम्हें