धर्म और जात

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नमस्कार दोस्तों मैं वीरेंद्र मेहरावैसे तो धर्म  जिसके माध्यम से हम अपने जीवन को सादगी और सुचारू रूप से चलाने का कार्य करते हैं परंतु यही धर्म राष्ट्र की प्रगति में बाधक किस तरह बनता है समझ में हम अलग-अलग धर्म को मानते हैं और उन्हें विश्वास करते हैं परंतु आपस में किसी दूसरे धर्म के प्रति हमारे मन में  घृणा भाव पैदा हो जाता है हम आपस में लड़ने लगते हैं कि हमारा झंडा ऊंचा है हमारा धर्म ऊंचा है हमारे भगवान बड़े हैं आपस में एक ऐसा भाव बन जाता है जिससे हम सभी लोग की एकजुटता और संगठन,