रंगों के पैकेट

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मार्च का महीना शुरु हो चुका है, चारों ओर होली की तैयारियां हो रही हैं, पेड़ पौधों में आई नन्ही कोपले अब हल्के हरे पत्तों में बदल गई हैं, घर के बाहर लगे पौधों में पानी डालते डालते आशीष न जाने कहां खो गया, अंदर से तभी मां की आवाज आई बेटा कब से बैठा है.. तू जा बाजार से सामान ले आ।आशीष झोला लेकर बाहर चला जाता है। कल होली है लेकिन आशीष को हमेशा की तरह न जाने क्यों होली अच्छी नहीं लगती है। बाजार से वापस आकर आशीष अपने कमरे में जाकर बैठ गया, उसके दिल में