हिम स्पर्श - 69

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69 अचानक जीत ने अपने हाथों को खींच लिया। वफ़ाई की प्रेम की लहरें ज्वाला में बदल गई। आग का एक दरिया उभर आया जो धधक रहा था। वफ़ाई us आग में जलने लगी। वह चिख उठी, “जीत, मत जाओ, मुझे स्पर्श करो, मेरा हाथ पकड़ो, मेरे समीप आओ, मुझे आलिंगन दो, जीत।” वफ़ाई की चीख मरुभूमि की नि:शब्द रात्री में विलीन हो गई। वह फिर चीखी। चीख फिर से विलीन हो गई। वह तड़प उठी। उस अग्नि को वफ़ाई सह न सकी। वफ़ाई ने आँखें खोल दी। वह जीत को ढूँढने लगी। जीत कहीं नही दिखा। वफ़ाई ने गगन