66 संध्या ढलने को थी। समय, एक लंबी यात्रा करके सूरज को पश्चिम दिशा तरफ ले जा रहा था। जीत ने आँखें खोली तब गगन के रंग बदल गए थे। स्वच्छ नीले गगन पर कहीं कहीं सफ़ेद हिम जैसे बादलों की टोली घूम रही थी। कोई पंखी दूर दूर उन बादलों को स्पर्श करने की अपेक्षा लिए ऊंचे, अधिक ऊंचे उड़ रहा था। जीत की द्रष्टि ने उस पंखी का पीछा किया। पंखी अत्यंत ऊपर तक जा पहुंचा, जीत की द्रष्टि भी। कुछ क्षण तक वह उस ऊंचे उड़ते पंखी को, भागते बादलों को, रंग बदलते गगन को देखता रहा।