दाग दिल के....

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दाग दिल के.... 'नहीं-नहीं’, छोड़ दो, मुझे और परेशान मत करो।’ मीरा ने झटके से पैर हिलाया और गोंगियाने लगी। नींद गहरी थी इसलिए सपना टूटने में भी समय लगा। जागी तो पता चला कि वह किसी सूखी नदी में नहीं, अपने बिस्तर पर थी। कैसा हैरतनाक और डरावना ख़्वाब था। वीरान बियाबान में कोई सूखी हुई नदी थी और उसमें तड़पते, रेंगते जलसर्प उसके पैरों से आ लिपटे थे। वे उन्हें झटक कर जितना दूर करने की कोशिश करती। वे उतनी ही तेज़ी से उसकी ओर बढ़े चले आते। धीरे-धीरे उसके आसपास सर्पों की संख्या बढ़ने लगी थी।