बुड्ढ़ा खूसट

(17)
  • 13.4k
  • 1
  • 2.5k

ये जंग-ए-अज़ीम के ख़ातमे के बाद की बात है जब मेरा अज़ीज़ तरीन दोस्त लैफ़्टीनैंट कर्नल मोहम्मद सलीम शेख़ (अब) ईरान इराक़ और दूसरे महाज़ों से होता हुआ बमबई पहुंचा। उस को अच्छी तरह मालूम था, मेरा फ़्लैट कहाँ है। हम में गाहे-गाहे ख़त-ओ-किताबत भी होती रहती थी लेकिन उस से कुछ मज़ा नहीं आता था इस लिए कि हर ख़त संसर होता है। इधर से जाये या उधर से आए अजीब मुसीबत थी।