ज़मीन शक़ हो रही है। आसमान काँप रहा है। हर तरफ़ धुआँ ही धुआँ है। आग के शोलों में दुनिया उबल रही है। ज़लज़ले पर ज़लज़ले आ रहे हैं। ये क्या हो रहा है? “तुम्हें मालूम नहीं?” “नहीं तो।” “लो सुनो.... दुनिया भर को मालूम है।” “क्या?” “वही ज़मानी बेगम.... वो मोटी चडर।” “हाँ हाँ, क्या हुआ उसे!” “वही जो होता है लेकिन इस उम्र में श्रम नहीं आई बद-बख़्त को।” “ये बद-बख़्त ज़मानी बेगम है कौन?”