किरदार

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बहुत कुछ ...छोड़ गई थी वह हमारे कमरे में. कंघे में फँसे बाल. नीली, उतारी हुई नाईटी को अपनी आदत के उलट, उल्टा ही कम्प्यूटर टेबल की कुर्सी के हत्थे में टाँग कर वह स्ट्डीरूम में चली गई थी. वहाँ बॉलकनी के गमले में लगे पौधों में पानी देकर, कुछ किताबों को बिखेर कर. वह ऎसे चली गई जैसे पड़ोस में मिलने गई हो. नौकर बता रहे थे उसने उस रोज़ खुद फ्रिज साफ किया था. सारे बासी खाने फिंकवाए थे. बहुत सारी सब्ज़ियाँ बनवा कर फ्रिज में रखवा कर. सात दिनों का मेन्यू किचन में टांग कर बच्चों के लिए उनका मनपसंद ‘वॉलनट डेट्स’ केक बेक किया था.