तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 19

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बरसों बरस बीत गये उस बात को पर वो रात कभी नहीं बीती अप्पी के जीवन से। बाद उसके भी जीवन में कितने-कितने तीखे नुकीले मंजर आये... कुछ बदलता भी कैसे... जब साथ वही था ... वह कुछ नहीं बदल पाई थी ... हाॅँ, उस के भीतर बदल गया था सब... वह कोमल सी चीज भी जो अभिनव के लिए उसके दिल में थी एकायक काछ कर साफ कर दी गई थी .... विडंबना थी कि वह अब भी अभिनव के साथ थी ... जबकि साथ तो उस रात से ही छूट गया था.. तभी से वह अकेली हो गयी थी... निपट अकेली।