छूटी गलियाँ - 6

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नमस्ते, देर तो नहीं हुई मुझे? नहीं नहीं बैठिये, मैंने बेंच पर एक ओर खिसकते हुए कहा। हम काफी देर तक एक दूसरे को योजना की रूपरेखा बताते समझाते रहे। करीब एक घंटे तक हर पहलू पर विचार करने के बाद उसने मुझसे विदा ली। उसके जाने के बाद भी बहुत देर तक मैं अपनी योजना पर विचार करता रहा। उसे सही गलत के तराजू पर परखता रहा। योजना को अमल में लाने में सिर्फ दो दिन शेष थे। मुझे अभी काफी तैयारी करनी थी। फोन पर मेरी आवाज़ शांत होनी चाहिये संयत, आज़ जैसी अधीरता नहीं हो। बात करते हुए मुझे इतना सामान्य होना होगा जैसे मैं हमेशा से राहुल से बात करते रहा होऊँ। और इसके लिए मुझे अभ्यास कर लेना चाहिये।