तपते जेठ मे गुलमोहर जैसा - 15

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सुविज्ञ ने कार पोर्च में खड़ी की...... अप्पी गेट में ताला बंद कर रही थी......। ’’मैं कर दूँ......’’ सुविज्ञ एक दम पास आ गये थे.....’’ ’’बस हो गया......’’ अप्पी ने कहा और दोनो साथ ही अंदर आ गये...... अप्पी ने दीवान पर से कुशन मसनद हटाकर तकिया और चद्दर रखा..... किचन में जाकर पानी की बोतल और गिलास लाकर टेबल पर रखा, अपने लिये भी एक बोतल निकाल कर लायी......’’ ’’और कुछ..... चाहिए....’’ उसने पूछा..... ’’नहीं..... ठीक है......’’ सुविज्ञ अपने जूते खोलते हुए बोले!