छूटी गलियाँ - 1

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शाम होते ही मुझे घर में अकेलापन खाने को दौड़ता है इसलिए कॉलोनी के पार्क की ओर चल देता हूँ। आज भी शाम से ही पार्क में आ गया दो तीन चक्कर लगाये थक गया तो एक बेंच पर बैठ गया। काफी देर चहलकदमी करते युवा जोड़ों, महिलाओं और बुजुर्गों को देखता रहा। झूला झूलते और अपनी बारी आने का इंतज़ार करते बच्चों की उद्विग्नता और धैर्य को तौलता रहा। आसपास कुछ छोटे बच्चे फिसल पट्टी पर खेल रहे थे, उन की मम्मियाँ घास पर बैठी गपशप कर रही थीं और बीच बीच में अपने बच्चों को आवाज़ लगा कर आगाह भी करते जा रही थीं।