दोपहर की रात - हर्निल

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आज फिर में उसके घर के सामने की छत पर खड़ा हूँ पर वो वहां नही है। दिल में एक अजब सी परेशानी दौड़ गई कि जैसे मेने फिर से कुछ खो दिया हो... बात उन दिनों की है जब वो उसके घर की छत से मुझे हाथ हिला दिया करती थी और में था वज्र जैसे कठोर दिल का की उसके हाथ हिलाने को अनदेखा करके मुह मोड़ लिया करता था... हम एक ही कक्षा में पढ़ते थे, वो खुले दिल की ओर में खुद में खोया खोया रहने वाला..हर्निल रोज मुझे प्यार से हरि