एक विलक्षण चित्रकार

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एक विलक्षण चित्रकार मैं एक हाथ में लाठी लिये जमीन को टटोलता और दूसरे हाथ को फेंसिंग दीवार पर सरकाता जा रहा था। मुझे फेंसिंग दीवार का अंत ही नजर नहीं आ रहा था। शायद इस ओर फाटक था ही नहीं, क्योंकि मैं जानता हूँ कि फाटक के आते ही कोई खतरनाक कुत्ता भोंकने लगेगा या फिर कोई चौकीदार गाली देता हुआ दौड़ पड़ेगा। मकान शायद किसी पैसेवाले का था तभी तो इतनी लम्बी फेंसिंग वॉल नेे मकान को घेर रखा था। पर चीन की दीवार का भी कहीं अंत होता है। मेरा हाथ जैसे ही लोहे