फ़रिश्ता

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सुर्ख़ खुरदरे कम्बल में अताउल्लाह ने बड़ी मुश्किल से करवट बदली और अपनी मुंदी हुई आँखें आहिस्ता आहिस्ता खोलीं। कुहरे की दबीज़ चादर में कई चीज़ें लिपटी हुई थीं जिन के सही ख़द्द-ओ-ख़ाल नज़र नहीं आते थे। एक लंबा, बहुत ही लंबा, ना ख़त्म होने वाला दालान था या शायद कमरा था जिस में धुँदली धुँदली रोशनी फैली हुई थी। ऐसी रोशनी जो जगह जगह मैली हो रही थी।