अमरेश ने नींव की खुदाई शुरू कराके अपने नाना की शरण ली। उनसे पांच हजार की मदद मांगी और ये भी कहा कि ये मदद नहीं बल्कि उधार होगा और हालात माफिक होते ही वो इस रकम को लौटा देगा। उसकी मौसियों, मौसों के प्रखर विरोध के बावजूद लोकपाल तिवारी ने साहस करते हुए सबके सामने उसे दो हजार और अकेले में पांच सौ रुपये देते हुए कहा”इसे लौटाने की जरूरत नहीं है, जाओ अपना काम बनाओ, विजयी भव बेटा”। ज़िन्दगी पल-पल रंग बदल रही थी कल तक जिस नाना को लेकर उसके मन में तमाम कड़वाहट थी अब वही उसको एक बेबस बुजुर्ग नजर आने लगे। सत्यनारायण की पूजा करके उसने नींव पर ईंट जोड़कर घर के काम का श्रीगणेश कर दिया।