पीरन

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ये उस ज़माने की बात है जब मैं बेहद मुफ़लिस था। बंबई में नौ रुपये माहवार की एक खोली में रहता था जिस में पानी का नल था न बिजली। एक निहायत ही ग़लीज़ कोठड़ी थी जिस की छत पर से हज़ारहा खटमल मेरे ऊपर गिरा करते थे। चूहों की भी काफ़ी बोहतात थी...... इतने बड़े चूहे मैंने फिर कभी नहीं देखे। बिल्लियां उन से डरती थीं।