सुर्ती वाला भूत

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बात दिनों की है जब हर गांव, बाग- बगीचों में भूत-प्रेतों,डायन-चुड़ैलों के विस्तृत साम्राज्य था। गांवों के अगल-बगल में पेड़-पौधे, झाड़-ताड़, बाग ( महुआनी,अमवारी, बँसवारी आदि) की बहुलता हुआ करती थी एक गांव से दूसरे गांव में जाने के लिए पगडंडियों का सहारा लेना पड़ता था। जो लोग दिल के कमजोर होते थे वो घने दोपहर या दिन ढलने के बाद भूत-प्रेत के डर से गांव के बाहर जाने से डरते थे या जाते भी थे तो इतना घबराकर की जो हिम्मती आदमी होता था वो दल का नेतृत्व करता था औऱ साथ ही अपने साथियों को चेताता था कि