हिम स्पर्श 45

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45 “हाय अल्लाह। मुझे आश्चर्य है कि मैं इन अनपेक्षित गलियों में कैसे भटक गई? मैं उद्देश्य को भूल गई और अज्ञात-अनदेखे मार्ग पर चलती रही। जीत, मैं भी कितनी मूर्ख हूँ।“ “वफ़ाई, ज्ञात एवं पारंपरिक मार्ग पर चलने से तो अज्ञात–अनदेखे मार्ग पर चलना अच्छा है। इसका भी अपना सौन्दर्य है।“ “मुझे किसी नए मार्ग पर मत ले चलना। मुझे मेरे प्रश्न का उत्तर दे दो कि मैं किसका चित्र बनाऊँ। शब्दों से खेले बिना मेरा मार्गदर्शन करो।“ “मुझे थोड़ा विचार करने दो।“ “अनुमति है। किन्तु अधिक समय मत लेना। और हाँ, इस जगत को छोडकर कहीं और