हिम स्पर्श 43

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43 “श्रीमान चित्रकार, नई भाषा के लिए धन्यवाद। इस के द्वारा सर्जित मौन के लिए भी धन्यवाद। मुझे भी मौन पसंद है। किन्तु, कुछ बात मैं इस भाषा से व्यक्त नहीं कर पा रही हूँ। मुझे पुन: शब्दों के शरण में आना पड़ा है। तुम....।“ वफ़ाई बोलती रही। जीत शांत, स्थिर एवं शब्द विहीन था। उसने वफ़ाई के शब्दों पर ध्यान नहीं दिया। वफ़ाई जान गई कि जीत बात करना नहीं चाहता। “मौन का किल्ला जो हमने बनाया था, मैंने उसे अंशत: तोड़ दिया। मैं मेरी बात कह तो दूँ किन्तु कोई सुनना ही नहीं चाहता। मैं भी मौन हो