परेशानी का सबब

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नईम मेरे कमरे में दाख़िल हुआ और ख़ामोशी से कुर्सी पर बैठ गया। मैंने उस की तरफ़ नज़र उठा कर देखा और अख़बार की आख़िरी कापी के लिए जो मज़मून लिख रहा था उसको जारी रखने ही वाला था कि मअन मुझे नईम के चेहरे पर एक ग़ैरमामूली तबदीली का एहसास हुआ मैं ने चश्मा उतार कर उस की तरफ़ फिर देखा और कहा। “क्या बात है नईम। मालूम होता है तुम्हारी तबीयत नासाज़ है।”