हिम स्पर्श - 37

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37 एक सुंदर प्रभात के प्रथम प्रहार ने सो रहे जीत को जगा दिया। वह झूले से उठा। गगन को देखा। अभी भी थोड़ा अंधकार वहाँ रुका हुआ था। चंद्रमा स्मित कर रहा था। जीत ने चंद्रमा को स्मित दिया, जीत को अच्छा लगा। जीत ने चिंता नहीं की कि चंद्रमा ने उसके स्मित का क्या उत्तर दिया। वह सीधे चित्राधार के समीप गया और अपूर्ण रहे चित्र को पूरा करने में व्यसत हो गया। “क्या तुम अपूर्ण हो?” जीत ने चित्र को पूछा। “थोड़े से रंग भर दो मुझ में, मैं पूर्ण हो जाऊंगा।“ जीत उसमें रंग भरने लगा।