नारा

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उसे यूं महसूस हुआ कि इस संगीन इमारत की सातों मंज़िलें उस के काँधों पर धर दी गई हैं। वो सातवें मंज़िल से एक एक सीढ़ी करके नीचे उतरा और तमाम मंज़िलों का बोझ उस के चौड़े मगर दुबले कांधे पर सवार होता गया। जब वो मकान के मालिक से मिलने के लिए ऊपर चढ़ रहा था। तो उसे महसूस हुआ था कि उस का कुछ बोझ हल्का हो गया है और कुछ हल्का हो जाएगा। इस लिए कि उस ने अपने दिल में सोचा था। मालिक मकान जिसे सब सेठ के नाम से पुकारते हैं उस की बिप्ता ज़रूर सुनेगा। और किराया चुकाने के लिए उसे एक महीने की और मोहलत बख़्श देगा..... बख़्श देगा!...... ये सोचते हुए उस के ग़रूर को ठेस लगी थी लेकिन फ़ौरन ही उस को असलीयत भी मालूम हो गई थी.... वो भीक मांगने ही तो जा रहा था। और भीक हाथ फैला कर, आँखों में आँसू भर के, अपने दुख दर्द सुना कर और अपने घाओ दिखा कर ही मांगी जाती है......!