दादी,,

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चिंटू अरे ओ चिंटू,,,, अस्सी बरस की रामकली बिस्तर पर लेटे लेटे अपने पोते को पुकार रही है। रामकली बूढी अवश्य हो गई है किंतु जीवन जीने की आशा ने उसे कभी जीर्ण होने नहीं दिया। खाल सिकुड़ अवश्य गई है किंतु मन की तरुणाई कहीं उसके मनन करते मन के किसी कोने में अभी भी जीवित है। और जीवन की इसी आशा ने कभी उसके हाथ पांव को जड़ करने की जुर्रत नहीं की। किन्तु अब हाथ पांव में कम्पन अवश्य होने लगा है। क्या हुआ जो चन्द कदम चलने के प्रयास में साँस चढ़ जाती है। इस से