इश्क़ बेपरवाह

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सूरज की रौशनी पड़ते ही ओस की बूंद विलुप्त हो जाया करती, दूब कुम्हलाने लगते, रंग सुर्ख गेरुआ हो उठती। रश्मि-रथी मुस्कुराते हुये एक नई सुबह की आगाज़ कर देता हैं। कुछ पुराने पन्ने पलट चुका होता है और नए पन्नों पर हस्ताक्षर जारी हो जाया करती। और इन्हीं कशमकश में ज़िन्दगी की रेलगाड़ी एक नई स्टेशन को रवाना हो जाती है।।वक्त का पहिया घूमते हुये एग्जाम डेट को भी नज़दीक ले आयी। लखनऊ सेंटर पड़ा था ज़नाब का। शामों-सुबह का फ़लसफ़ा मिट चुका था। शिक्षा के समुंद्री लहरें साहिल से लिपट-चिपट कर मझधार तलाशने लगा।। निर्धारित डेट पर लखनऊ