जोत दीदी तो उस दिन से ही हमारे परिवार का हिस्सा बन गई थी। गिल्ल आंटी थोड़ी शांत स्वभाव की थी, ज़्यादातर बीमार रहतीं थीं, इसलिए घर की ज़िम्मेदारी भी जोत दीदी पर थी। दीदी ने अभी बारहवीं की परीक्षा दी थी, अगले महीने कालेज में दाखिला लेना हैं। उनकी दोनों छोटी बहनों का ख्याल भी जोत दीदी ही रखती थीं। उस दिन की सुबह, गिल्ल परिवार के लिए काली रात ही बन गई। ज़ोरो से रोने चिल्लाने की आवाज़ सुनकर मैं उठ गई। पापा मम्मी को बता रहे थे, खबर आई हैं कि आंतकवादी मुठभेड़ में गिल्ल अंकल शहीद हो गए हैं। उस दिन के बाद से जोत दीदी तो जैसे शांत ही हो गई, और पूरा गिल्ल परिवार चुप।