दूदा पहलवान

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स्कूल में पढ़ता था तो शहर का हसीन तरीन लड़का मुतसव्वर होता था। उस पर बड़े बड़े अमर्द परस्तों के दरमियान बड़ी ख़ूँख़्वार लड़ाईयां हुईं। एक दो इसी सिलसिले में मारे भी गए। वो वाक़ई हसीन था। बड़े मालदार घराने का चश्म ओ चराग़ था इस लिए उस को किसी चीज़ की कमी नहीं थी। मगर जिस मैदान वो कूद पड़ा था उस को एक मुहाफ़िज़ की ज़रूरत थी जो वक़्त पर उस के काम आसके। शहर में यूं तो सैंकड़ों बदमआश और गुंडे मौजूद थे जो हसीन ओ जमील सलाहू के एक इशारे पर कट मरने को तय्यार थे, मगर दूदे पहलवान में एक निराली बात थी। वो बहुत मुफ़लिस था, बहुत बद-मिज़ाज और अख्खड़ तबीयत का था, मगर इस के बावजूद उस में ऐसा बांकपन था कि सलाहू ने उस को देखते ही पसंद कर लिया और उन की दोस्ती होगई।