लौट आओ दीपशिखा - 1

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गुलमोहर के साये में स्थित वह खूबसूरत बंगला जो ‘गौतम शिखा कुटीर’ के नाम से मशहूर था और जो कभी रौनक से लबरेज़ हुआ करता था आज सन्नाटे की गिरफ़्त में है और उसके भीतरी दरवाज़े और काले स्टील के कंगूरेदार गेट पर सरकारी ताले लटक रहे हैं शेफ़ाली कितनी बार इस गेट से पार हुई है बंगले का कोना-कोना उसका परिचित है और उसकी मालकिन मशहूर चित्रकार उसकी बचपन की दोस्त दीपशिखा..... उसकीहर अदा, हर ख़ासो आम बात की राज़दार है वह ज़िन्दग़ी का ये हश्र होगा सोचा न था ये सरकारी ताले उसके दिमाग़ में अंधड़ मचा रहे हैं वह तहस-नहस हो जाती है उसकी नींदें दूर छिटक जाती हैं और चैन हवा हो जाता है क्याइंसान इतना बेबस-लाचार है? क्या वो सबके होते हुए भी लावारिस और तनहा है?