हिम स्पर्श 21

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चाँदनी के प्रकाश में वफ़ाई मार्ग पर बढ़े जा रही थी। मार्ग शांत और निर्जन था। केवल चलती जीप का ध्वनि ही वहाँ था। यह कैसी मरुभूमि थी जहां दिवस के प्रकाश में भी मनुष्य नहीं मिलता और रात्रि अधिक निर्जन हो जाती है। ना रात्री थी ना दिवस था। रात्रि अपने अंतिम क्षणों में थी तो दिवस अभी नींद से जागा नहीं था। जीप धीरे धीरे चल रही थी। अश्रु भी वफ़ाई की आँखों से गालों तक की यात्रा धीरे धीरे कर रहे थे। जीप अविरत चल रही थी किन्तु अश्रु रुक रुक कर बह रहे थे। वफ़ाई