रस्म

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बर्तन गिरने की आवाज़ से शिखा की आँख खुल गयी। घडी देखी तो आठ बज रहे थे , वह हड़बड़ा कर उठी। "उफ़्फ़ ! मम्मी जी ने कहा था कल सुबह जल्दी उठना है , 'रसोई' की रस्म करनी है, हलवा-पूरी बनाना है... और मैं हूँ कि सोती ही रह गयी। अब क्या होगा...! पता नहीं, मम्मी जी-डैडी जी क्या सोचेंगे, कहीं मम्मी जी गुस्सा न हो जाएँ। हे भगवान!" उसे रोना आ रहा था। 'ससुराल' और 'सास' नाम का हौवा उसे बुरी तरह डरा रहा था। कहा था दादी ने- ''ससुराल है, ज़रा संभल कर रहना। किसी को कुछ कहने