हिम स्पर्श - 18

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सूर्य अस्त होने को दौड़ रहा था। संध्या ने धरती पर प्रवेश कर लिया था। वफ़ाई ने गगन की तरफ देखा। उसे मन हुआ कि वह पंखी बन कर गगन में उड़ने लगे, मरुभूमि से कहीं दूर पर्वत पर चली जाय। वह उड़ने लगी, ऊपर, ऊपर खूब उपर; बादलों को स्पर्श करने लगी, गगन के खालीपन को अनुभव करने लगी। तारे उसके आसपास थे तो चन्द्रमाँ निकट था। उसने चंद्रमा को पकड़ना चाहा, दोनों हाथ फैलाये किन्तु चंद्रमा को पकड़ न सकी। “चंद्रमा, मैं तुम्हें अपने आलिंगन में लेना चाहती हूँ, किन्तु जितनी भी बार मैंने मेरे हाथ फैलाये, तुम