तीन में ना तेरह में

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“मैं तीन में हूँ न तेरह में, न सुतली की गिरह में” “अब तुम ने उर्दू के मुहावरे भी सीख लिए।” “आप मेरा मज़ाक़ क्यों उड़ाते हैं। उर्दू मेरी मादरी ज़बान है” “पिदरी क्या थी? तुम्हारे वालिद बुज़ुर्गवार तो ठेठ पंजाबी थे। अल्लाह उन्हें जन्नत नसीब करे बड़े मरंजां मरंज बुज़ुर्ग थे। मुझ से बहुत प्यार करते थे। इतनी देर लखनऊ में रहे, वहां पच्चीस बरस उर्दू बोलते रहे लेकिन मुझ से हमेशा उन्हों ने पंजाबी ही में गुफ़्तुगू की। कहा करते थे उर्दू बोलते बोलते मेरे जबड़े थक गए हैं अब इन में कोई सकत बाक़ी नहीं रही।”