हिम स्पर्श - 17

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मीठी हवा की एक धारा आई, वफ़ाई, जीत एवं सारे घर को स्पर्श करती हुई चली गई। दोनों को हवा भाने लगी। “किन्तु तुमने मुंबई क्यों छोड़ा? सब कुछ तो सही हो रहा था। सफलता भी, नाम भी, सम्मान भी। सब कुछ तो ठीक था। तो फिर?” वफ़ाई ने प्रश्नों की धारा बहा दी। “मैं तुम्हारी जिज्ञासा को समझता हूँ। उचित समय पर मैं यह सब भी बता दूंगा।“ “समय के यह क्षण क्या उचित समय नहीं है? हम जिस समय में जीते हैं वह समय ही सदैव उचित समय होता है। मेरा आग्रह है कि तुम अभी सब कुछ