कविताए

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!!! व्यक्ति और संस्था !!! एक व्यक्ति जहाँ पा लेता है अपना रोजगारवह संस्था उसके लिए होती है जैसे घर-बारलेकिन क्या सारे लोग करते हैं ऐसा व्यवहारसौ में नब्बे नहीं रखते हैं कर्त्तव्य से सरोकारआते हैं, मौज मनाते हैं, कार्य रहता दरकिनारसुविधाएँ तो उन्हें चाहियें, जताते हैं अधिकारकरते हैं दस मेहनत तो सौ उसके हिस्सेदारदेश करे कैसे प्रगति, कैसे चलेगी यूं सरकारबनेगी नयी राहें, कैसे खुशहाली रहेगी बरकरारन बदला अगर नजरिया संकट आएंगे बारम्बारइसीलिए कहता हूँ जगाओ नयी चेतना का संसारभाईचारा बना रहे, आपस में बढे सभी में प्यारकरें कुछ काम तब, जब मिले नंबर दो का दामकुछ खा जाएँ,पचा जाएँ