स्वाभिमान - लघुकथा - 44

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काफी देर से बिस्तर पर लेटे हुए वे दोनों गहन चिंता में डूबे हुए एकटक छत की ओर ताक रहे थे । सुनो जी !आपकी फैक्ट्री में हड़ताल कब तक चलेगी । देखो ना तीन महीने हो गये पगार मिले हुए । ऐसा ही चलता रहा तो भूखों मरने की नौबत आ जायेगी सरोज ने डूबते से स्वर में वहाँ पसरी खामोशी को तोड़ते हुए अपने पति से पूछा ।