स्वाभिमान - लघुकथा - 34

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भरी जवानी में विधवा हो गई रमिया को जमींदार की टहलुवई पति से विरासत में मिली। उसके लिए श्रम और भूख एक-दूसरे के पर्याय थे। दिनभर खटना नियति होने के बावजूद रमिया ने एक गुस्ताखी की। वह छः वर्षीय अपने इकलौते बेटे को स्कूल भेजने लग गई।