स्वाभिमान - लघुकथा - 16

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बेटा एक बड़ी कंपनी में प्रबंधक बन गया। उसने अपनी पसंद से शादी भी कर ली। बहू को एक बच्चा भी हो गया पर बेटे ने खबर तक नहीं दी। अब बच्चा चार वर्ष का हो चला था। अब बेटे को माता-पिता की सुध आई। रामप्रसाद को इसका पता गाँव के एक युवक से चला जो उसी शहर में मुलाज़िम था। एक दिन बेटा किशोर मय पत्नी के घर आया। पिता तो रुष्ट थे पर माँ का हृदय बड़ा कोमल होता है। वह पसीज गई। उसने आरती के साथ बहू का स्वागत किया।