मास्को का सच

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मास्को का सच “ललिता! सो गयी क्या?” “नहीं तो, बस ऐसे ही आपकी प्रतीक्षा में बैठे बैठे आँख लग गयी थी।” “हाँ, रात भी काफी हो गयी है, बच्चे भी थक कर सो गए हैं।” “आज आप कहाँ रह गए थे, कभी भी इतनी देर से नहीं आते?” “ललिता, मैं आज मास्को में फंस गया था, वो मुझे यहाँ आने ही नहीं दे रहे थे।” “हाँ मैंने भी सुना था कि तुमने किसी ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर कर दिये हैं जो हमारे देश के विरुद्ध है........ क्या ऐसा समझौता करते समय आपको उन सैनिकों की याद नहीं आई जो अपनी