स्वाभिमान - लघुकथा - 12

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शाम का धुंधलका गहराने लगा था । हिरणी सी लगभग कुलांचे मारती वो अपनी झुग्गी की तरफ भागी जा रही थी । बार बार आँखों मे भूखे बच्चों की तस्वीर कौंधती ।