सुहाने सफर की ओर।

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मैं बहुत दिनों से पापा से ज़िद कर रही थी -" पापा कहीं घूमाने ले जाओ,कहीं लेकर नहीं जाते। सारी छुट्टियां ऐसे ही ख़त्म हो जाती हैं। " पापा ने कहा -"ठीक है इस रविवार को चलेंगे ". मेरी ख़ुशी का तो ठिकाना ही नहीं था। मैंने शनिवार से ही पापा को याद दिलाना शुरू कर दिया-" पापा कल कहीं मत जाना ,हमे घूमने जाना है। चलोगे ना बस एक बार हाँ कर दो फिर तो जाना ही पड़ेगा। क्युकि झुठ बोलना गन्दी बात है। " पापा ने कहा -" कल पोलियो रविवार है। मेरी ड्यूटी लग सकती है। " पहले