ढाई बजे की बस

(12)
  • 4.2k
  • 1
  • 581

ढाई बजे की बस इतनी रात का सफर किसे अच्छा लगता है भला? मगर क्या किया जाए? वहाँ के लिए बस ही रात को दो बजे के बाद मिलती है। वह भी इस शहर से नहीं बल्कि दूसरे शहर जाकर। यह तो वैसे भी कोई शहर नहीं है, कस्बा है कस्बा। रेखा उस सुनसान बस अड्डे के उस एक मात्र प्रतीक्षालय की ओर ताक रही थी जहाँ प्रतीक्षालय के बोर्ड के ऊपर एक नियोन लाइट जल रही थी और धुंधलके में बोर्ड पर लिखे ‘यात्री प्रतिक्षालय’ में से ‘तिक्षा’ पर इतनी तेज़ रोशनी चमक रही थी कि दोनों अक्षर मिट गए से