ठहरा हुआ रिस्ता

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कुछ रिस्ते होते है जो जताये नही जाते पर उस बस निभाने पडते है प्रस्तुत कहानी ‘ठहरा हुआ रिस्ता’ में लेखक ने सोतेली माँ और बेटे के रिस्ते को मजबुत बंधन से बांधने की कोशीश की है जो रिस्ते मिले नही है पर ऐसा नही है की कभी मिलेंगे नही वो बस कही रुके हुए है कही ठहरे हुए है उस ठहरे हुए रिस्ते को जुडने मे ज्यादा वक्त नही लगता