अभिमन्यु लड़ रहा है

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रात का सन्नाटा अपने चरम पर था। गली भी दूधिया रोशनी में ऊँघ रही थी। अपने इलाके की लड़ाई लड़ते कुत्ते अब थक कर किसी ओटले की ओट में गुड़ीमुड़ी एक दूसरे से सटे एक दूसरे को गर्मी पहुँचाने की कोशिश करते नींद की आगोश में पहुँच चुके थे। हर घर के दरवाजे खिड़की पूरब की तीखी ठंडी हवा की तीक्ष्ण मार से बचने के लिए कस कर बंद थे। हर घर रजाई कम्बल गोदड़ी की गर्माहट में डूबा हलके भारी खर्राटों से गूँज रहा था। उस रात गजब की ठण्ड थी। ठण्ड ने सुबह से ही अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए थे। सूरज ने भी उससे साँठ गाँठ कर उसका साथ दिया था। सुबह देर से उसने अपनी गर्माहट बिखेरी तो शाम को जल्दी ही उसे समेट कर चल दिया। घरों में अँधेरा भरने के पहले ही अँगीठी अलाव जल गए थे लेकिन वे भी कब तक इस ठिठुरन से लड़ते सब सिर पटक कर लस्त पड़े थे।