शूरसेन और सुषेणा की कथा

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गोमुख ने कहा, श्रावस्ती में शूरसेन नाम का एक राजपुत्र था। वह राजा का ग्रामभुक था। राजा के लिए उसके मन में बड़ी सेवा भावना थी। उसकी पत्नी सुषेणा उसके सर्वथा अनुरूप थी और वह भी उसे अपने प्राणों की तरह चाहता था। एक बार श्रावस्ती के राजा का पड़ोसी राजा से युद्ध हुआ और सेना प्रस्थान करने लगी तो राजा ने शूरसेन का स्मरण किया। शूरसेन ने सुषेणा से कहा, राजा ने सेना के साथ जाने के लिए बुलाया है। मुझे जाना है। सुषेणा ने कहा, आर्यपुत्र, मुझे यहाँ अकेली छोड़कर मत जाओ। मैं यहाँ आपके बिना एक क्षण भी न रह सकूँगी। शूरसेन ने कहा, सुन्दरी! राजा ने बुलाया है और मैं न जाऊँ, ऐसा कैसे हो सकता है। मैं राजसेवक हूँ। स्वाधीन नहीं हूँ। राजाज्ञा का पालन करना मेरे लिए आवश्यक है। सुषेणा बोली, यदि आपके लिए जाना आवश्यक ही है, तो इतना जान लीजिए, कि आपके बिना मैं रह नहीं पाऊँगी। शूरसेन ने उसे समझाया-बुझाया।