वररुचि की कथा

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वररुचि के मुँह से बृहत्कथा सुनकर पिशाच योनि में विन्ध्य के बीहड़ में रहने वाला यक्ष काणभूति शाप से मुक्त हुआ और उसने वररुचि की प्रशंसा करते हुए कहा, आप तो शिव के अवतार प्रतीत होते हैं। शिव के अतिरिक्त ऐसी कथाएँ और कौन सुना सकता है! यदि गोपनीय न हो, तो आप अपनी कथा भी मुझे सुनाइए। वररुचि ने कहा, सुनो काणभूति, मैं तुम्हें अपनी रामकहानी भी सुना देता हूँ। कौशाम्बी में सोमदत्त नामक ब्राह्मण रहते थे। वसुदत्ता उनकी पत्नी थी। यह ही मेरे पिता और माता थे। मेरे शैशव में ही पिता का स्वर्गवास हो गया। माता ने बड़े कष्ट उठाकर मुझे पाला।