गुणाढ्य की कथा

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गुणाढ्य राजा सातवाहन का मन्त्री था। भाग्य का ऐसा फेर कि उसने संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश तीनों भाषाओं का प्रयोग न करने की प्रतिज्ञा कर ली थी और विरक्त होकर वह विन्ध्यवासिनी के दर्शन करने विन्ध्य के वन में आ गया था। विन्ध्यवासिनी ने उसे काणभूति के दर्शन करने का आदेश दिया। उसके साथ ही गुणाढ्य को भी पूर्वजन्म का स्मरण हो आया और वह काणभूति के पास आकर बोला, पुष्पदन्त ने जो बृहत्कथा तुम्हें सुनायी है, उसे मुझे भी सुना दो, जिससे मैं भी इस शाप से मुक्त होऊँ और तुम भी।