तेईसवाँ परिच्छेद चाचा साहब के लिए क्या आनंद का दिन है। आज दिल्ल्लीश्वर के राजपूत सैनिक विजयगढ़ के अतिथि हुए हैं। प्रबल प्रतापी शाहशुजा आज विजयगढ़ का बंदी है। कार्तवीर्यार्जुन के बाद से विजयगढ़ को ऐसा बंदी और नहीं मिला। कार्तवीर्यार्जुन की बंदी हालत को याद करके निश्वास छोड़ते हुए चाचा साहब राजपूत सुचेत सिंह से बोले, सोच कर देखो, हजार हाथों में हथकड़ियाँ पहनाने के लिए कितनी तैयारी करनी पड़ी थी! कलियुग आने के बाद से धूमधाम एकदम कम हो गई है। अब तो राजा का पुत्र हो चाहे बादशाह का बेटा, बाजार में दो से ज्यादा हाथ खोजे नहीं मिलते। बंदी बना कर आनंद नहीं मिलता।