राजर्षि - 1

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राजर्षि के सम्बन्ध में कुछ कहने का अनुरोध किया गया है। कहने को विशेष कुछ नहीं है। इस बारे में मुख्य वक्तव्य यही है कि यह मेरा स्वप्न में उपलब्ध उपन्यास है। बालक पत्रिका की संपादिका ने मुझे इस मासिक की थाली में नियमित रूप से परोसने के काम में लगा दिया था। उसका फल हुआ यह कि प्राय: एकमात्र मैं ही उसके भोज का प्रबंधकर्ता बन गया। तनिक समय पाते ही मन 'क्या लिखूँ' 'क्या लिखूँ' करता रहता था।